महव-ए-रक़्स-ए-विसाल था क्या था
आगही
रिहाई
सुकूत-ए-शहर-ए-दिल की बेबसी को भी कोई समझे
ख़ुद-फ़रेबी रहे तो अच्छा है
संग-दिल
चाँद जैसा इश्क़
सीने से दिल निकाल के हाथों पे रख दिया
कितने आलम गुज़र गए मुझ पर
मिरी मोहब्बत भी नीलगूं है
हवा का रंग नहीं है मगर मिज़ाज तो है
मैं अपने आप को रोकूँ कहाँ तक