आप देखें तो मिरे दिल में भी क्या क्या कुछ है
ये भी घर आप का है क्यूँ न फिर आबाद रहे
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मैं न कहता था कि बहकाएँगे तुम को दुश्मन
ये दिन तो सर्फ़ आप के वादों में हो गए
जब तो मैं हूँ आह में ऐसा असर पैदा करूँ
कहीं उस बज़्म तक रसाई हो
उठता हूँ उस की बज़्म से जब हो के ना-उमीद
जो कि नादाँ है वो क्या जाने तिरी चाहत की क़द्र
अब तो सब का तिरे कूचे ही में मस्कन ठहरा
अंदाज़ अपना देखते हैं आईने में वो
मुझ से क्यूँ कहते हो मज़मूँ ग़ैर की तहरीर का
हो के बस इंसान हैराँ सर पकड़ कर बैठ जाए
मुंतज़िर हूँ किसी के आने का
सच है 'निज़ाम' याद भी उस को न होंगे हम