सच है 'निज़ाम' याद भी उस को न होंगे हम
पर क्या करें वो हम से भुलाया न जाएगा
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आदत से उन की दिल को ख़ुशी भी है ग़म भी है
गए हैं जब से वो उठ के याँ से है हाल बाहर मिरा बयाँ से
हम को शब-ए-विसाल भी रंज-ओ-मेहन हुआ
आप देखें तो मिरे दिल में भी क्या क्या कुछ है
तुम हो गए कुछ और न कुछ और हम हुए
मंज़ूर क्या है ये भी तो खुलता नहीं सबब
ख़बर नहीं कई दिन से वो दिक़ है या ख़ुश है
छेड़ मंज़ूर है क्या आशिक़-ए-दिल-गीर के साथ
न बन आया जब उन को कोई जवाब
शब तो वो याँ से रूठ के घर जा के सो रहे
फ़िराक़ में तो सताती है आरज़ू-ए-विसाल