तुम हो गए कुछ और न कुछ और हम हुए
कुछ तो सबब हुआ है कि वो रब्त कम हुए
Wasi Shah
Anwar Masood
Rahat Indori
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Gulzar
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Jaun Eliya
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किसी ने पकड़ा दामन और किसी ने आस्तीं पकड़ी
आँखें फूटें जो झपकती भी हों
सदमे यूँ ग़ैर पर नहीं आते
अंदाज़ अपना देखते हैं आईने में वो
कहने से न मनअ' कर कहूँगा
देख कर ग़ैर को शोख़ी देखो
हो के बस इंसान हैराँ सर पकड़ कर बैठ जाए
फ़िक्र यही है हर घड़ी ग़म यही सुब्ह ओ शाम है
कू-ए-जानाँ में गर अब जाएँ भी तो क्या देखें
कहते हैं सुन के माजरा मेरा
बहर-ए-हस्ती से कूच है दरपेश
हिलती है ज़ुल्फ़ जुम्बिश-ए-गर्दन के साथ साथ