देख कर ग़ैर को शोख़ी देखो
मुझ से कहते हैं कि देखा तू ने
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तेरा मिलना तो है मुश्किल मगर इतना तो हुआ
दो दिन भी उस सनम से न अपनी निभी कभी
हाल-ए-दिल तुम से मिरी जाँ न कहा कौन से दिन
ये हवा सर्द चली और ये बादल आए
क्या किसी से किसी का हाल कहें
मज़ा क्या जो यूँही सहर हो गई
आए भी वो चले भी गए याँ किसे ख़बर
अब किस को याँ बुलाएँ किस की तलब करें हम
हक़ बात तो ये है कि उसी बुत के वास्ते
ख़ुश्बू वो पसीने की तिरी याद न आ जाए
गर दोस्तो तुम ने उसे देखा नहीं होता
दिल लगे हिज्र में क्यूँ कर मेरा