दरबाँ से आप कहते थे कुछ मेरे बाब में
सुनता था मैं भी पास ही दर के खड़ा हुआ
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इक बात लिखी है क्या ही मैं ने
तेरा मिलना तो है मुश्किल मगर इतना तो हुआ
तेरे ही ग़म में मर गए सद-शुक्र
हम को शब-ए-विसाल भी रंज-ओ-मेहन हुआ
तसव्वुर आप का है और मैं हूँ
तुझ से ही छुपाऊँगा ग़म अपना
मैं न कहता था कि बहकाएँगे तुम को दुश्मन
आए भी वो चले भी गए याँ किसे ख़बर
इक वो कि रात दिन रहें महफ़िल में उस की हाए
नहीं सूझता कोई चारा मुझे
कहते हैं सुन के माजरा मेरा
अब तुम से क्या किसी से शिकायत नहीं मुझे