मैं न कहता था कि बहकाएँगे तुम को दुश्मन
तुम ने किस वास्ते आना मिरे घर छोड़ दिया
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ज़िद है गर है तो हो सभी के साथ
कहीं उस बज़्म तक रसाई हो
गए हैं जब से वो उठ के याँ से है हाल बाहर मिरा बयाँ से
कभी मिलते थे वो हम से ज़माना याद आता है
अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ
बिगड़ने से तुम्हारे क्या कहूँ मैं क्या बिगड़ता है
इक बात लिखी है क्या ही मैं ने
जब तो मैं हूँ आह में ऐसा असर पैदा करूँ
आए भी वो चले भी गए याँ किसे ख़बर
आप देखें तो मिरे दिल में भी क्या क्या कुछ है
अब आओ मिल के सो रहें तकरार हो चुकी
सच है 'निज़ाम' याद भी उस को न होंगे हम