क्या किसी से किसी का हाल कहें
नाम भी तो लिया नहीं जाता
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देख अपने क़रार करने को
क्यूँ करते हो ए'तिबार मेरा
गर कोई पूछे मुझे आप इसे जानते हैं
इक बात लिखी है क्या ही मैं ने
बिगड़ने से तुम्हारे क्या कहूँ मैं क्या बिगड़ता है
गर कहूँ मतलब तुम्हारा खुल गया
अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ
अब तो सब का तिरे कूचे ही में मस्कन ठहरा
इस क़दर आप का इताब रहे
जब तो मैं हूँ आह में ऐसा असर पैदा करूँ
वो इशारों में उस का कहना हाए
अब आओ मिल के सो रहें तकरार हो चुकी