क्या दुआ रोज़-ए-हश्र की माँगें
वहाँ पर भी यही ख़ुदा होगा
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देखिए तो ख़याल-ए-ख़ाम मिरा
देख अपने क़रार करने को
दिल लगे हिज्र में क्यूँ कर मेरा
छेड़ मंज़ूर है क्या आशिक़-ए-दिल-गीर के साथ
बिगड़ने से तुम्हारे क्या कहूँ मैं क्या बिगड़ता है
ये दिन तो सर्फ़ आप के वादों में हो गए
और अब क्या कहें कि क्या हैं हम
दिल में क्या उस को मिला जान से हम देखते हैं
अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ
फ़िराक़ में तो सताती है आरज़ू-ए-विसाल
वो इशारों में उस का कहना हाए
अब किस को याँ बुलाएँ किस की तलब करें हम