अंदाज़ अपना देखते हैं आईने में वो
और ये भी देखते हैं कोई देखता न हो
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हम को शब-ए-विसाल भी रंज-ओ-मेहन हुआ
है ख़ुशी इंतिज़ार की हर दम
सच है 'निज़ाम' याद भी उस को न होंगे हम
देख अपने क़रार करने को
दिल पे जो गुज़रे है मेरे आह मैं किस से कहूँ
तुझ से ही छुपाऊँगा ग़म अपना
न बन आया जब उन को कोई जवाब
तसव्वुर आप का है और मैं हूँ
अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ
ख़बर नहीं कई दिन से वो दिक़ है या ख़ुश है
ज़ाए नहीं होती कभी तदबीर किसी की
वाँ तो मिलने का इरादा ही नहीं