हज़ार तरह के सदमे उठाने वाले लोग
न जाने क्या हुआ इक आन में बिखर से गए
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Wasi Shah
Anwar Masood
Allama Iqbal
Gulzar
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(319) Peoples Rate This
ऐ मेरे ख़्वाब आ मिरी आँखों को रंग दे
जब मिला हुस्न भी हरजाई तो उस बज़्म से हम
शायद इस राह पे कुछ और भी राही आएँ
मैं एक से किसी मौसम मैं रह नहीं सकता
इंसान हो किसी भी सदी का कहीं का हो
जो उस ने किया उसे सिला दे
साहिब-ए-मेहर-ओ-वफ़ा अर्ज़-ओ-समा क्यूँ चुप है
अहल-ए-दिल के दरमियाँ थे 'मीर' तुम
ख़्वाब ही ख़्वाब कब तलक देखूँ
दिल ही थे हम दुखे हुए तुम ने दुखा लिया तो क्या
अजीब थी वो अजब तरह चाहता था मैं
शिकस्त-ए-जाँ से सिवा भी है कार-ए-फ़न क्या क्या