इंसान हो किसी भी सदी का कहीं का हो
ये जब उठा ज़मीर की आवाज़ से उठा
Wasi Shah
Jaun Eliya
Habib Jalib
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Rahat Indori
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Anwar Masood
Mir Taqi Mir
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ज़मीन जब भी हुई कर्बला हमारे लिए
मर्सिया
साहिब-ए-मेहर-ओ-वफ़ा अर्ज़-ओ-समा क्यूँ चुप है
बोले नहीं वो हर्फ़ जो ईमान में न थे
तुम हम-सफ़र हुए तो हुई ज़िंदगी अज़ीज़
ऐसी तेज़ हवा और ऐसी रात नहीं देखी
हम ने खुलने न दिया बे-सर-ओ-सामानी को
कोई धुन हो मैं तिरे गीत ही गाए जाऊँ
हवा के दोश पे रक्खे हुए चराग़ हैं हम
विसालिया
दरूद पढ़ते हुए उस की दीद को निकलें
जवानी क्या हुई इक रात की कहानी हुई