एक अंगड़ाई से सारे शहर को नींद आ गई
ये तमाशा मैं ने देखा बाम पर होता हुआ
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हर-चंद कि था हिज्र में अंदेशा-ए-जाँ भी
आएगी हर तरफ़ से हवा दस्तकें लिए
अजब दश्त-ए-हवस का सिलसिला है
तबीबो चारागरो तुम से जो हुआ सो हुआ
पागल हवा के दोश पे जिंस-ए-गिराँ न रख
इक पल की दौड़ धूप में ऐसा थका बदन
लफ़्ज़ छिन जाएँ मगर तहरीर हो रौशन जहाँ
बहुत लम्बी मसाफ़त है बदन की
ज़ात में कर्ब हो और कर्ब का इज़हार न हो
क़दम क़दम पर की रुस्वाई फिसला हर इक ज़ीने पर
आने वाला इंक़लाब आया नहीं
मेरा पसंदीदा मंज़र