लफ़्ज़ छिन जाएँ मगर तहरीर हो रौशन जहाँ
होंट हों ख़ामोश लेकिन गुफ़्तुगू बाक़ी रहे
Anwar Masood
Wasi Shah
Allama Iqbal
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
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में भी तलाश-ए-आब-ए-हवस में निकला हूँ
सुब्ह-दम
क़दम क़दम पर की रुस्वाई फिसला हर इक ज़ीने पर
एक अंगड़ाई से सारे शहर को नींद आ गई
बदन की ओट से तकने लगा है
मैं नज़र से एक अंदाज़-ए-नज़र होता हुआ
उम्र भर शौक़ का दफ़्तर लिक्खा
ज़ात में कर्ब हो और कर्ब का इज़हार न हो
ख़ुश्क हो जाए न झरने वाला
है इख़्तियार में तेरे न मेरे बस में है
इक पल की दौड़ धूप में ऐसा थका बदन