तुम्हारी बे-रुख़ी ने लाज रख ली बादा-ख़ाने की
तुम आँखों से पिला देते तो पैमाने कहाँ जाते
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रहगुज़र
भरोसा
हालात से ख़ौफ़ खा रहा हूँ
जब भी आता है मिरा नाम तिरे नाम के साथ
जो बीत गई उस की ख़बर है कि नहीं है
निकल कर दैर-ओ-काबा से अगर मिलता न मय-ख़ाना
उफ़ुक़ के उस पार ज़िंदगी के उदास लम्हे गुज़ार आऊँ
ये मो'जिज़ा भी मोहब्बत कभी दिखाए मुझे
जो भी आता है बताता है नया कोई इलाज
जीत ले जाए कोई मुझ को नसीबों वाला
उकताहट
ज़िंदगी के ग़म लाखों और चश्म-ए-नम तन्हा