इस क़दर ख़ाली हुआ बैठा हूँ अपनी ज़ात में
कोई झोंका आएगा जाने किधर ले जाएगा
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अक्स कोई किसी मंज़र में न था
पी चुके थे ज़हर-ए-ग़म ख़स्ता-जाँ पड़े थे हम चैन था
हम हैं मंज़र सियह आसमानों का है
क़दम ज़मीं पे न थे राह हम बदलते क्या
दिलों में ख़ाक सी उड़ती है क्या न जाने क्या
कोई ख़्वाब ख़्वाब सा फ़ासला
थी पाँव में कोई ज़ंजीर बच गए वर्ना
सर-ब-सर एक चमकती हुई तलवार था मैं
'नून-मीम-राशिद' के इंतिक़ाल पर
आख़िरी बस
मुझे पता था कि ये हादसा भी होना था
वो हँसते खेलते इक लफ़्ज़ कह गया 'बानी'