मिरे बनाए हुए बुत में रूह फूँक दे अब
न एक उम्र की मेहनत मिरी अकारत कर
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रक़्स
तीरगी बला की है मैं कोई सदा लगाऊँ
छुपी है तुझ में कोई शय उसे न ग़ारत कर
मोड़ था कैसा तुझे था खोने वाला मैं
क़दम ज़मीं पे न थे राह हम बदलते क्या
उड़ चला वो इक जुदा ख़ाका लिए सर में अकेला
उदास शाम की यादों भरी सुलगती हवा
'बानी' ज़रा सँभल के मोहब्बत का मोड़ काट
सरसब्ज़ मौसमों का नशा भी मिरे लिए
ज़माँ मकाँ थे मिरे सामने बिखरते हुए
तमाम रास्ता फूलों भरा है मेरे लिए
दोस्तो क्या है तकल्लुफ़ मुझे सर देने में