ग़म-ए-हयात से इतनी भी है कहाँ फ़ुर्सत
कि तेरी याद में जी भर के रो लिया जाए
Anwar Masood
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(595) Peoples Rate This
इब्तिदा हूँ कि इंतिहा हूँ मैं
अब इस मक़ाम पे लाई है ज़िंदगी मुझ को
रहा असीर कई साल नक़्श-ए-पा की तरह
ना-आश्ना-ए-दर्द नहीं बेवफ़ा नहीं
तू मिरी बात का जवाब न दे
हुए जब से मोहब्बत-आश्ना हम
उम्र भर तुझ को देखने पर भी
बहारों को चमन याद आ गया है
जलता रहा हूँ ज़ीस्त के दोज़ख़ में उम्र भर
मुझे भी यूँ तो बड़ी आरज़ू है जीने की
दिल में कोई ख़ुशी नहीं लेकिन