बाग़बाँ काम हमें क्या है वो उजड़े कि रहे
जब हमीं बाग़ से निकले तो नशेमन कैसा
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कह के मैं दिल की कहानी किस क़दर खोया गया
मय रहे मीना रहे गर्दिश में पैमाना रहे
मर कर अरे वाइज़ कोई ज़िंदा नहीं होता
उन के होते कौन देखे दीदा-ओ-दिल का बिगाड़
मिरे घर मिस्ल तबर्रुक के ये सामाँ निकला
इश्क़ में दिल-लगी सी रहती है
ज़रा जो हम ने उन्हें आज मेहरबाँ देखा
ग़म मुझे देते हो औरों की ख़ुशी के वास्ते
हम जानते हैं लुत्फ़-ए-तक़ाज़ा-ए-मय-फ़रोश
ऐसी ही इंतिज़ार में लज़्ज़त अगर न हो
मर गए फिर भी तअल्लुक़ है ये मय-ख़ाने से
वो गुल हैं न उन की वो हँसी है