किसी ज़िंदाँ में सोचना है अबस
दहर हम में है या कि दहर में हम
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नए कपड़े बदल और बाल बना तिरे चाहने वाले और भी हैं
उस से बिछड़ के एक उसी का हाल नहीं मैं जान सका
रात को ख़्वाब हो गई दिन को ख़याल हो गई
मैं जिस के साथ 'ज़फ़र' उम्र भर उठा बैठा
कोई तो तर्क-ए-मरासिम पे वास्ता रह जाए
काम इतनी ही फ़क़त राहगुज़र आएगी
ख़ुमार-ए-शब में जो इक दूसरे पे गिरते हैं
मैं ने घाटे का भी इक सौदा किया
अक्स पानी में अगर क़ैद किया जा सकता
सर-ए-शाम लुट चुका हूँ सर-ए-आम लुट चुका हूँ
सितारे सो गए तो आसमाँ कैसा लगेगा
बदन ने छोड़ दिया रूह ने रिहा न किया