रहमत की कड़ी धूप में लेटूँ मौला
रूमाल में ख़िर्मन को लपेटूँ मौला
अब और मुझे बख़्श के हैरान न कर
दे इतना कि जितना मैं समेटूँ मौला
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Javed Akhtar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Rahat Indori
Habib Jalib
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(745) Peoples Rate This
तख़्लीक़ में मोतकिफ़ ये होना मेरा
बचपन में तुझे याद किया था मैं ने
घर लौह का आबाद किया है ऐ दोस्त
इक बोलती सूरत का नमूना क्या है
दिल्ली से वो जा रहा था जिस दम क़ंधार
ज़ाहिर है रुबाई में मिरी दम क्या है
गेसू में वो सुम्बुल के चमन हैं मालूम
सच्चाई पे इक निगाह कर लूँ या-रब
लिक्खे हैं फ़क़ीर ने जो शाही अल्फ़ाज़
शहबाज़-ए-नबी चर्ख़ पे मंडलाया था
उन की तो ये इरफ़ानी मनाज़िल में से है
मैं बुग़्ज़ के अम्बार से क्या लाता हूँ