मिरा वजूद हवाला तिरा हुआ आख़िर
तो खा गया ना मुझे तू मिरे सवाल-ए-क़दीम
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मआनी की तलाश में मरते लफ़्ज़
हैरत-ए-पैहम हुए ख़्वाब से मेहमाँ तिरे
खुलता है यूँ हवा का दरीचा समझ लिया
जब समाअत तिरी आवाज़ तलक जाती है
जब बीनाई सावन ने चुराई हो
होने की इक झलक सी दिखा कर चला गया
शोरिश-ए-वक़्त हुई वक़्त की रफ़्तार में गुम
ज़िक्र मेरा है आसमान में क्या
डूबते सूरज की सरगोशी
हम भी उसी के साथ गए होश से 'सईद'
जल थल का ख़्वाब था कि किनारे डुबो गया
सब करिश्मे तअल्लुक़ात के हैं