कैसी कैसी महफ़िलें सूनी हुईं
फिर भी दुनिया किस क़दर आबाद है
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Rahat Indori
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Anwar Masood
Gulzar
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
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तंग आते भी नहीं कशमकश-ए-दहर से लोग
तिरी आरज़ू से भी क्यूँ नहीं ग़म-ए-ज़िंदगी में कोई कमी
मन के मंदिर में है उदासी क्यूँ
सर-ए-राह
मिरे लहू को मिरी ख़ाक-ए-नागुज़ीर को देख
क़ाबील का साया
अपने ख़ूँ से जो हम इक शम्अ जलाए हुए हैं
हाथ आ सका है सिलसिला-ए-जिस्म-ओ-जाँ कहाँ
तारीकियों का हिसाब
हम अहल-ए-ज़र्फ़ कि ग़म-ख़ाना-ए-हुनर में रहे
रास्तों में इक नगर आबाद है
दोराहा