शेर गुफा से निकलेगा
शोर मचेगा जंगल में
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अब के वो ऐसे सफ़र पर क्या गए
मैं लबादा ओढ़ कर जाने लगा
धूप थी साया उठा कर रख दिया
बे-घरी
उस की आँखों में थी गहराई बहुत
बकरी ''में-में'' करती है
कल तलक सहरा बसा था आँख में
नक़्श डरेगा जंगल में
रो पड़ीं आँखें बहुत 'साहिल' मिरी
घर
किसी आईने का
उन से ऐ दोस्त मिरा यूँ कोई रिश्ता तो न था