आते हुए इस तन में न जाते हुए तन से
है जान-ए-मकीं को न लगावट न रुकावट
Allama Iqbal
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Parveen Shakir
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Gulzar
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Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
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नक़्श-ए-क़दम हैं राह में फ़रहाद-ओ-क़ैस के
अयाँ हो रंग में और मिस्ल-ए-बू गुल में निहाँ भी हो
यूँ तो हर दीन में है साहब-ए-ईमाँ होना
कैफ़-ए-मस्ती में अजब जलवा-ए-यकताई था
दरमियान-ए-जिस्म-ओ-जाँ है इक अजब सूरत की आड़
मिल-मिला के दोनों ने दिल को कर दिया बरबाद
हौसला वज्ह-ए-तपिश-हा-ए-दिल-ओ-जाँ न हुआ
आलम का वजूद है नुमूद-ए-बे-बूद
किताब-ए-दर्स-ए-मजनूँ मुसहफ़-रुख़्सार-ए-लैला है
लाज़िम मलज़ूम हो गए ज़ात-ओ-सिफ़ात
जसद ने जान से पूछा कि क़ल्ब-ए-बे-रिया क्या है
हैं सात ज़मीं के तबक़ और सात हैं अफ़्लाक