बस फ़र्क़ इस क़दर है गुनाह ओ सवाब में
टालने से वक़्त क्या टलता रहा
बे-हिस के तग़ाफ़ुल का तो शिकवा बे-सूद
हर एक फूल के दामन में ख़ार कैसा है
कौन कहता है मोहब्बत की ज़बाँ होती है
ग़म का सहरा न मिला दर्द का दरिया न मिला
झूमी है हर इक शाख़ सबा रक़्साँ है
तेरे महल में कैसे बसर हो इस की तो गीराई बहुत है
गाँधी
दिल वो सहरा है कि जिस में रात दिन
हम को अग़्यार का गिला क्या है
आप से क्या दोस्ती होने लगी