हो लेने दो बारिश हम भी रो लेंगे
दिल में हैं कुछ ज़ख़्म पुराने धो लेंगे
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ये बात सच है कि वो ज़िंदगी नहीं मेरी
ख़ता उस की मुआफ़ी से बड़ी है
ये ख़ल्क़ सारी हवा मेरे नाम कर देगी
ये लफ़्ज़ लफ़्ज़ शोला-बयानी उसी की है
मैं तुझ से झुक के मिला हूँ मगर ये ध्यान रहे
मैं ख़ुद को देखूँ अगर दूसरे की आँखों से
ग़ज़ल कहने में यूँ तो कोई दुश्वारी नहीं होती
आसमाँ तू ने छुपा रक्खा है सूरज को कहाँ
न जाने कैसी आँधी चल रही है
हमारी काविश-ए-शेर-ओ-सुख़न बे-कार जाती है