बुत करें आरज़ू ख़ुदाई की
शान तेरी है किबरियाई की
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बरसात
हम हैं सर-ता-बा-पा तमन्ना
कमाल-ए-इलम ओ तहक़ीक़-ए-मुकम्मल का ये हासिल है
तअ'ज्जुब क्या लगी जो आग ऐ 'सीमाब' सीने में
आओ फिर गर्मी दयार-ए-इश्क़ में पैदा करें
मेरी रिफ़अत पर जो हैराँ है तो हैरानी नहीं
जिंदान-ए-काएनात में महसूर कर दिया
ख़ुलूस-ए-दिल से सज्दा हो तो उस सज्दे का क्या कहना
ये दौर-ए-तरक़्क़ी है रिफ़अत का ज़माना है
ये किस ने शाख़-ए-गुल ला कर क़रीब-ए-आशियाँ रख दी
दिल तेरे तग़ाफ़ुल से ख़बर-दार न हो जाए
अफ़सोस गुज़र गई जवानी