शाद लखनवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शाद लखनवी (page 2)
नाम | शाद लखनवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Shad Lakhnavi |
जन्म की तारीख | 1805 |
मौत की तिथि | 1899 |
न जान कर गुल-ए-बाज़ी बहुत उछाल के फेंक
मिस्ल-ए-ख़ंजर लेसान रखते हैं
मिरी बे-रिश्ता-दिली से उसे मज़ा मिल जाए
मैं वो बे-चारा हूँ जिस से बे-कसी मानूस है
लुंज वो पा-ए-तलब हूँ कहीं जा ही न सकूँ
लब-ए-जाँ-बख़्श पर जो नाला है
लब-ब-लब बिंत-उल-अनब हर-दम रहे
क्या ये बुत बैठेंगे ख़ुदा बन कर
क्या कहूँ ग़ुंचा-ए-गुल नीम-दहाँ है कुछ और
ख़ुदा ही उस चुप की दाद देगा कि तुर्बतें रौंदे डालते हैं
ख़त देखिए दीदार की सूझी ये नई है
ख़लिश-ए-ख़ार हो वहशत में कि ग़म टूट पड़े
कहते हैं नाला-ए-हज़ीं सुन के
जों सब्ज़ा रहे उगते ही पैरों के तले हम
जो मुर्ग़-ए-क़िबला-नुमा बन के आशियाँ से चले
जो बीच में आइना हो प्यारे इधर हमारे उधर तुम्हारे
जिस के हम बीमार हैं ग़म ने उसे भी राँदा है
जी जाऊँ जो बंद नातिक़ा हो
झूट फ़िरदौस के फ़साने हैं
जान या दिल नज़्र करना चाहिए
इश्क़-ए-रुख़-ओ-ज़ुल्फ़ में किया कूच
इश्क़ में ज़ोर उम्र-भर मारा
हम से दो-चार बज़्म में ध्यान और की तरफ़
हम ने बाँधे हैं उस पे क्या क्या जोड़
हम वो नालाँ हैं बोली-ठोली में
हुई तो जा दिल में उस सनम की नमाज़ में सर झुका झुका कर
हस्ती-ओ-अदम में नफ़स-ए-चंद बशर के
हर शब ख़याल-ए-ग़ैर के मारे अलग-थलग
गोश कर फ़रियाद-ए-आशिक़ जान कर
ग़ैरों में हिना वो मल रहा है