जब जीते-जी न पूछा पूछेंगे क्या मरे पर
मुर्दे की रूह को भी घर से निकालते हैं
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हम वो नालाँ हैं बोली-ठोली में
जी जाऊँ जो बंद नातिक़ा हो
गोश कर फ़रियाद-ए-आशिक़ जान कर
हर एक जवाहर बेश-बहा चमका तो ये पत्थर कहने लगा
न जान कर गुल-ए-बाज़ी बहुत उछाल के फेंक
ज़रा देखना ख़ाकसारी हमारी
शक्ल-ए-मिज़्गाँ न ख़ार की सी है
सदा रंग-ए-मीना चमकता रहा
वो नहा कर ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ को जो बिखराने लगे
जवानी से ज़ियादा वक़्त-ए-पीरी जोश होता है
तू वो हिन्दोस्ताँ में लाला है
बोसा ज़ुल्फ़-ए-दोता का दो