दिन के सहरा से जब बनी जाँ पर
एक मुबहम सा आसरा पा कर
हम चले आए इस तरफ़ और अब
रात के इस अथाह दरिया में
ख़्वाब की कश्तियों को खेते हैं!
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देख दरिया को कि तुग़्यानी में है
वो कौन था वो कहाँ का था क्या हुआ था उसे
शिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं है
जो चाहती दुनिया है वो मुझ से नहीं होगा
सारी दुनिया के मसाइल यूँ मुझे दरपेश हैं
फिर सफ़र बे-सम्त बे-मंज़िल हुआ
फ़रार
मंज़र गुज़िश्ता शब के दामन में भर रहा है
एतराफ़
वो कौन था
ये क़ाफ़िले यादों के कहीं खो गए होते
है कोई जो बताए शब के मुसाफ़िरों को