किस तरह पहुँचूँ मैं अपने यार किन पंजाब में
बाग़ में तू कभू जो हँसता है
कई फ़रहाद हैं जूया तिरे शीरीं लब के
करूँ हूँ रात दिन फेरे कई फेरे मियाँ साहिब
चमन में दहर के हर गुल है कान की सूरत
राह में ग़म-ज़दा-ए-इश्क़ को क्या टोको हो
दे के दिल हाथ तिरे अपने हाथ
कशिश से दिल की उस अबरू कमाँ को हम रखा बहला
क्या मदरसे में दहर के उल्टी हवा बही
जाने न पाए उस को जहाँ हो तहाँ से लाओ
वस्फ़ अँखियों का लिखा हम ने गुल-ए-बादाम पर
मुझे क्या देख कर तू तक रहा है