क्या मदरसे में दहर के उल्टी हवा बही
वाइज़ नही को अम्र कहे अम्र को नही
Gulzar
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एहसान तिरा दिल मिरा क्या याद करेगा
साक़ी मुझे ख़ुमार सताए है ला शराब
जवाब-ए-नामा या देता नहीं या क़ैद करता है
बदन पर कुछ मिरे ज़ाहिर नहीं और दिल में सोज़िश है
आई ईद व दिल में नहीं कुछ हवा-ए-ईद
असीरों का नहीं कुछ शोर-ओ-ग़ुल ये आज ज़िंदाँ में
न मैं ने कुछ कहा तुझ से न तू ने मुझ से कुछ पूछा
फड़कूँ तो सर फटे है न फड़कूँ तो जी घटे
जो कोई कि यार-ओ-आश्ना है
इन दिनों हम से जो वहशी की तरह भड़को हो
इश्क़ ने चुटकी सी ली फिर आ के मेरी जाँ के बीच
मुहय्या सब है अब अस्बाब-ए-होली