ये एक अब्र का टुकड़ा कहाँ कहाँ बरसे
तमाम दश्त ही प्यासा दिखाई देता है
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
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Wasi Shah
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Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
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गूँजता है नाला-ए-महताब आधी रात को
मुझे गिरना है तो मैं अपने ही क़दमों में गिरूँ
इश्क़ के ग़म-गुसार हैं हम लोग
आ के पत्थर तो मिरे सेहन में दो-चार गिरे
इंदिमाल
मुजरिम
दश्त ओ सहरा अगर बसाए हैं
हवा-ए-शब से न बुझते हैं और न जलते हैं
सर-ए-रह अब न यूँ मुझ को पुकारो तुम ही आ जाओ
आलम में जिस की धूम थी उस शाहकार पर
न इतनी तेज़ चले सर-फिरी हवा से कहो