यूँ तो सारा चमन हमारा है
फूल जितने भी हैं पराए हैं
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गले मिला न कभी चाँद बख़्त ऐसा था
कोई इस दिल का हाल क्या जाने
वक़्त ने ये कहा है रुक रुक कर
रुख़्सार आज धो कर शबनम ने पंखुड़ी के
ख़िज़ाँ के चाँद ने पूछा ये झुक के खिड़की में
ये जल्वा-गाह-ए-नाज़ तमाशाइयों से है
मुझ से मिलने शब-ए-ग़म और तो कौन आएगा
मरीज़-ए-ग़म के सहारो कोई तो बात करो
बस एक रात ठहरना है क्या गिला कीजे
वक़्त की डोर ख़ुदा जाने कहाँ से टूटे
गूँजता है नाला-ए-महताब आधी रात को
मल्बूस ख़ुश-नुमा हैं मगर जिस्म खोखले