कहते हो सब कि तुझ से ख़फ़ा हो गया है यार
ये भी कोई बताओ कि किस बता पर हुआ
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बर-सर-ए-लुत्फ़ आज चश्म-ए-दिल-रुबा थी मैं न था
हक़ ये है कि का'बे की बिना भी न पड़ी थी
चाहूँ कि हाल-ए-वहशत-ए-दिल कुछ रक़म करूँ
कम समझते नहीं हम ख़ुल्द से मयख़ाने को
क्या मेरे काम से है रवाई को दुश्मनी
वही गुल है गुलिस्ताँ में वही है शम्अ' महफ़िल में
ये बंदा-ए-ख़ाकसार या'नी 'नाज़िम'
ऐ नोश-ए-लब-ओ-माह-रुख़-ओ-ज़ोहरा-जबीं
बे-दिए ले उड़ा कबूतर ख़त
बे दिए ले उड़ा कबूतर ख़त
सज्जादा है मेरा फ़लक-ए-नीली-फ़ाम
इख़्लास की धोके पर हूँ माइल तेरा