कभी तो शहीदों की क़ब्रों पे आओ
ये सब घर तुम्हारे बसाए हुए हैं
Ahmad Faraz
Anwar Masood
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Allama Iqbal
Habib Jalib
Rahat Indori
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
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न डरे बर्क़ से दिल की है कड़ी मेरी आँख
देते फिरते थे हसीनों की गली में आवाज़
वहशत-ए-दिल ये बढ़ी छोड़ दिए घर सब ने
दो दमों से है फ़क़त गोर-ए-ग़रीबाँ आबाद
जोश पर थीं सिफ़त-ए-अब्र-ए-बहारी आँखें
ता-सहर की है फ़ुग़ाँ जान के ग़ाफ़िल मुझ को
गया शबाब पर इतना रहा तअल्लुक़-ए-इश्क़
मुझ से लाखों ख़ाक के पुतले बना सकता है तू
मुझ से क्या पूछते हो दाग़ हैं दिल में कितने
मैं बाग़ में हूँ तालिब-ए-दीदार किसी का
अदम से दहर में आना किसे गवारा था
जिस तरफ़ बैठते थे वस्ल में आप