कब खुलेगा कि फ़लक पार से आगे क्या है
किस को मालूम कि दीवार से आगे क्या है
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बे-घरी
न देखें तो सुकूँ मिलता नहीं है
हमारा डूबना मुश्किल नहीं था
अजब यक़ीन सा उस शख़्स के गुमान में था
शायरों का जब्र
हम उस धरती के बाशिंदे थे 'ताबिश'
कहाँ आ गई हो
देव-मालाएँ सच्ची होती हैं
क़िस्सा-ए-शब
यक़ीं से जो गुमाँ का फ़ासला है
उतर गया है रग-ओ-पय में ज़ाइक़ा उस का