औरत को समझता था जो मर्दों का खिलौना
उस शख़्स को दामाद भी वैसा ही मिला है
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आज इतना जलाओ कि पिघल जाए मिरा जिस्म
शायद यूँही सिमट सकें घर की ज़रूरतें
अब तक मिरे आ'साब पे मेहनत है मुसल्लत
सब की निगाह में तिरे गोदाम आ गए
ग़मों की धूप में बरगद की छाँव जैसी है
जो कर रहा है दूसरों के ज़ेहन का इलाज
बेटे को सज़ा दे के अजब हाल हुआ है
'तनवीर' अब तू हल्क़ से भोंपू का काम ले
कभी अपने वसाएल से न बढ़ कर ख़्वाहिशें पालो
मैं अपने बचपने में छू न पाया जिन खिलौनों को
मिल मालिक के कुत्ते भी चर्बीले हैं
दिहात के वजूद को क़स्बा निगल गया