ऐ रात मुझे माँ की तरह गोद में ले ले
दिन भर की मशक़्क़त से बदन टूट रहा है
Anwar Masood
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Gulzar
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(967) Peoples Rate This
हम हिज़्ब-ए-इख़्तिलाफ़ में भी मोहतरम हुए
शायद यूँही सिमट सकें घर की ज़रूरतें
बेटे को सज़ा दे के अजब हाल हुआ है
सब की निगाह में तिरे गोदाम आ गए
कभी अपने वसाएल से न बढ़ कर ख़्वाहिशें पालो
उठा लेता है अपनी एड़ियाँ जब साथ चलता है
मिल मालिक के कुत्ते भी चर्बीले हैं
तेरी तो आन बढ़ गई मुझ को नवाज़ कर
'तनवीर' अब तू हल्क़ से भोंपू का काम ले
आज इतना जलाओ कि पिघल जाए मिरा जिस्म
जो कर रहा है दूसरों के ज़ेहन का इलाज