शायद यूँही सिमट सकें घर की ज़रूरतें
'तनवीर' माँ के हाथ में अपनी कमाई दे
Rahat Indori
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अब तक मिरे आ'साब पे मेहनत है मुसल्लत
आज इतना जलाओ कि पिघल जाए मिरा जिस्म
कभी अपने वसाएल से न बढ़ कर ख़्वाहिशें पालो
बेटे को सज़ा दे के अजब हाल हुआ है
हम हिज़्ब-ए-इख़्तिलाफ़ में भी मोहतरम हुए
मैं अपने बचपने में छू न पाया जिन खिलौनों को
सब की निगाह में तिरे गोदाम आ गए
उठा लेता है अपनी एड़ियाँ जब साथ चलता है
मिल मालिक के कुत्ते भी चर्बीले हैं
कितना बोद है मेरे फ़न और पेशे के माबैन
ग़मों की धूप में बरगद की छाँव जैसी है