तेरी तो आन बढ़ गई मुझ को नवाज़ कर
लेकिन मिरा वक़ार ये इमदाद खा गई
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आज इतना जलाओ कि पिघल जाए मिरा जिस्म
'तनवीर' अब तू हल्क़ से भोंपू का काम ले
ग़मों की धूप में बरगद की छाँव जैसी है
कभी अपने वसाएल से न बढ़ कर ख़्वाहिशें पालो
हम हिज़्ब-ए-इख़्तिलाफ़ में भी मोहतरम हुए
उठा लेता है अपनी एड़ियाँ जब साथ चलता है
आज भी 'सिपरा' उस की ख़ुश्बू मिल मालिक ले जाता है
औरत को समझता था जो मर्दों का खिलौना
कितना बोद है मेरे फ़न और पेशे के माबैन
जो कर रहा है दूसरों के ज़ेहन का इलाज
मिल मालिक के कुत्ते भी चर्बीले हैं