क्या अजब लोग थे गुज़रे हैं बड़ी शान के साथ
रास्ते चुप हैं मगर नक़्श-ए-क़दम बोलते हैं
Anwar Masood
Jaun Eliya
Wasi Shah
Gulzar
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Rahat Indori
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
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कभी न आएँगे जाने वाले
कैसे रिश्तों को समेटें ये बिखरते हुए लोग
वो लोग भी तो किनारों पे आ के डूब गए
कोई शिकवा न शिकायत न वज़ाहत कोई
मेरे ज़ख़्मों का सबब पूछेगी दुनिया तुम से
ये रोज़-ओ-शब की मसाफ़त ये आना जाना मिरा
अपनी पलकों के शबिस्तान में रक्खा है तुम्हें
मैं चाहता हूँ कभी यूँ भी हो कि मेरी तरह
जितने अल्फ़ाज़ हैं सब कहे जा चुके
मिज़ाज अपना मिला ही नहीं ज़माने से
साथ होने के यक़ीं में भी मिरे साथ हो तुम