ऐ हम-नफ़स न पूछ जवानी का माजरा
मौज-ए-नसीम थी इधर आई उधर गई
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फ़ित्ना-आरा शोरिश-ए-उम्मीद है मेरे लिए
फ़िक्र-ए-मआश ओ इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ
है ये पुर-दर्द दास्ताँ 'महरूम'
शहीद भगत-सिंह
अक़्ल को क्यूँ बताएँ इश्क़ का राज़
हम भूल को अपनी इल्म-ओ-फ़न समझे हैं
ग़लत की हिज्र में हासिल मुझे क़रार नहीं
ज़ाहिर में क़ज़ा बहुत सितम ढाती है
यूँ तो बरसों न पिलाऊँ न पियूँ ऐ ज़ाहिद
जब काली घटाएँ झूम कर आती हैं
दरवाज़े पे तेरे इक जहाँ झुकता है
हमारे वास्ते है एक जीना और मर जाना