हर मुलाक़ात पे सीने से लगाने वाले
कितने प्यारे हैं मुझे छोड़ के जाने वाले
Anwar Masood
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(580) Peoples Rate This
अब के मसरूफ़ियत-ए-इश्क़ बहुत है हम को
वो एक हाथ बढ़ाएगा तुझ को पा लेगा
दिलों पे दर्द का इम्कान भी ज़ियादा नहीं
बदन में आग है रोग़न मिरे ख़याल में है
इक रोज़ खेल खेल में हम उस के हो गए
फ़र्ज़-ए-सुपुर्दगी में तक़ाज़े नहीं हुए
वक़्त की ताक़ पे दोनों की सजाई हुई रात
इस से पहले कि ये आज़ार गवारा कर लें
जल्द आएँ जिन्हें सीने से लगाना है मुझे
उस हिज्र पे तोहमत कि जिसे वस्ल की ज़िद हो
मैं तो शब-ए-फ़िराक़ था तुम एक उम्र थी