हज़ारों मौसमों की हुक्मरानी है मिरे दिल पर
हर इक मुफ़लिस के माथे पर अलम की दास्तानें हैं
हर एक मौसम में रौशनी सी बिखेरते हैं
मुद्दतों उस की ख़्वाहिश से चलते रहे हाथ आता नहीं
कौन कहता है मुलाक़ात मिरी आज की है
कितनी ज़ुल्फ़ें उड़ीं कितने आँचल उड़े चाँद को क्या ख़बर
मुझे ख़बर थी कि अब लौट कर न आऊँगा
इस जुदाई में तुम अंदर से बिखर जाओगे
तो मैं भी ख़ुश हूँ कोई उस से जा के कह देना
तुम्हारा नाम लिखने की इजाज़त छिन गई जब से
समुंदर में उतरता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
दुख दर्द में हमेशा निकाले तुम्हारे ख़त