मिस्र में हुस्न की वो गर्मी-ए-बाज़ार कहाँ
जिंस तो है पे ज़ुलेख़ा सा ख़रीदार कहाँ
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Anwar Masood
Allama Iqbal
Gulzar
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(784) Peoples Rate This
सरीर-ए-सल्तनत से आस्तान-ए-यार बेहतर था
ख़ल्वत हो और शराब हो माशूक़ सामने
इस अश्क ओ आह में सौदा बिगड़ न जाए कहीं
नहीं मा'लूम अब की साल मय-ख़ाने पे क्या गुज़रा
ये वो आँसू हैं जिन से ज़ोहरा आतिशनाक हो जावे
उम्र फ़रियाद में बर्बाद गई कुछ न हुआ
यार कब दिल की जराहत पे नज़र करता है
दोस्ती बद बला है इस में ख़ुदा
पड़ गई दिल में तिरे तशरीफ़ फ़रमाने में धूम
कार-ए-दीं उस बुत के हाथों हाए अबतर हो गया
सौ सौ हैं इल्तिफ़ात तग़ाफ़ुल में यार के