मुझे भी ख़ुद न था एहसास अपने होने का
तिरी निगाह में अपना मक़ाम खोने तक
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क्या हुआ हम से जो दुनिया बद-गुमाँ होने लगी
बाद-ए-नफ़रत फिर मोहब्बत को ज़बाँ दरकार है
हर नया रस्ता निकलता है जो मंज़िल के लिए
अगरचे हाल ओ हवादिस की हुक्मरानी है
सच कहियो कि वाक़िफ़ हो मिरे हाल से 'आमिर'
बज़्म में यूँ तो सभी थे फिर भी 'आमिर' देर तक
न समझे अश्क-फ़िशानी को कोई मायूसी
इक ख़ला सा है जिधर देखो इधर कुछ भी नहीं
सर के नीचे ईंट रख कर उम्र भर सोया है तू
धीरे धीरे सर में आ कर भर गया बरसों का शोर
चंद घंटे शोर ओ ग़ुल की ज़िंदगी चारों तरफ़