सर के नीचे ईंट रख कर उम्र भर सोया है तू
आख़िरी बिस्तर भी 'आमिर' तेरा फ़र्श-ए-ख़ाक था
Jaun Eliya
Wasi Shah
Anwar Masood
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Rahat Indori
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(928) Peoples Rate This
सच कहियो कि वाक़िफ़ हो मिरे हाल से 'आमिर'
मैं आज कल के तसव्वुर से शाद-काम तो हूँ
इक ख़ला सा है जिधर देखो इधर कुछ भी नहीं
धीरे धीरे सर में आ कर भर गया बरसों का शोर
क्या हुआ हम से जो दुनिया बद-गुमाँ होने लगी
मुझे भी ख़ुद न था एहसास अपने होने का
अगरचे हाल ओ हवादिस की हुक्मरानी है
चैन ही कब लेने देता था किसी का ग़म हमें
बाद-ए-नफ़रत फिर मोहब्बत को ज़बाँ दरकार है
चंद घंटे शोर ओ ग़ुल की ज़िंदगी चारों तरफ़
नज़रों में कहाँ उस की वो पहला सा रहा मैं