टूटती रहती है कच्चे धागे सी नींद
आँखों को ठंडक ख़्वाबों को गिरानी दे
Anwar Masood
Rahat Indori
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Habib Jalib
Parveen Shakir
Wasi Shah
Gulzar
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1068) Peoples Rate This
खुली थी आँख समुंदर की मौज-ए-ख़्वाब था वो
रात दमकती है रह रह कर मद्धम सी
बे-हिसी पर मिरी वो ख़ुश था कि पत्थर ही तो है
हवा में उड़ता कोई ख़ंजर जाता है
बुझ कर भी शो'ला दाम-ए-हवा में असीर है
गो मिरी हर साँस इक पेगाज़-ए-सरमस्ती रही
इक पीली चमकीली चिड़िया काली आँख नशीली सी
छेड़ कर जैसे गुज़र जाती है दोशीज़ा हवा
ताज़ा है उस की महक रात की रानी की तरह
मौज़ू-ए-सुख़न हिम्मत-ए-आली ही रहेगी
घसीटते हुए ख़ुद को फिरोगे 'ज़ेब' कहाँ